Jolly LLB
Jolly LLB - 2
शानदार फ़िल्म है !!!
अवश्य देखे
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Tommorrow most awaited Aashadhi Ekadashi ❤️❤️
Jai Jai Pandurang Hari
बोला पुंडलिक वरदा हरी विठ्ठल
श्री ज्ञानदेव तुकाराम
पंढरीनाथ महाराज की जय
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बोला पुंडलिक वरदा हरी विठ्ठल
श्री ज्ञानदेव तुकाराम
पंढरीनाथ महाराज की जय
शब्दों के अभाव व् उसके अर्थ को न जानने के कारण कई लोग राष्ट्र को सर्वोपरी मानते है लेकिन वो ये भूल जानते है कि जो टीवी मीडिया इस लाइव डिबेट को करवाती है उनका मुख्य उद्देश्य विशेष गुट के लोगों का समर्थन करना मात्र होता है !! धर्म वास्तव में कई संस्कृतियों,संस्कार,नियम,व्यवहार का समूह है जो जीवन को प्रकृति के साथ संतुलित होते हुए जीने की प्रेरणा देती है !! न केवल धरती में जीना बल्कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी हमारा मार्ग प्रशस्त करती है ! धर्म को अपनाने वाला सही मायने मे स्वयं की रक्षा,स्वयं का उद्धार करने में सक्षम होता है और जब इस संकल्प का समय ज्यों ज्यों बढ़ता जाता है त्यों त्यों वो स्वयं के साथ परिवार,समाज व् राष्ट्र के कल्याण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका देने में समर्थ होता जाता है !! धर्म को संकल्पता के साथ अपने जीवन में उतारने से न केवल खुद का बल्कि जातक के इर्द-गिर्द का वातावरण भी पावन व् उससे प्रभावित अपने आप हो जाता है !! धर्म सिर्फ एक है जो सत्य है सनातन है जिसका दुरूपयोग आज कई पाखंडी साधू-संत,मौलवी,पादरी व् प्रवचनकर्ता लोगों को गुमराह करने के लिए कर रहे है और करते आये भी है !! आज धर्म को पूजा की विधि का पर्याय मान लिया गया है जबकि धर्म में अध्यात्म,योग का समाविष्ट होना जरूरी है जिसे अधिकांश धर्म-प्रेमी नही मानते !! किसी भी राष्ट्र की कल्पना धर्म के बिना संभव नही ! सत्य ही धर्म है और धर्म ही सत्य है और एक मात्र ही धर्म है वो है सत्य सनातन धर्म !!!!!
एक प्रेरणादायक कहानी - पाप की खीर
बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा ।
सेठ ने सोचा कि इतना पाप हो रहा है , तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए।
एक दिन उसने बासमती चावल की खीर बनवायी और किसी साधु बाबा को आमंत्रित कर भोजनप्रसाद लेने के लिए प्रार्थना की।
साधु बाबा ने बासमती चावल की खीर खायी।
दोपहर का समय था । सेठ ने कहाः "महाराज ! अभी आराम कीजिए । थोड़ी धूप कम हो जाय फिर पधारियेगा।
साधु बाबा ने बात स्वीकार कर ली।
सेठ ने 100-100 रूपये वाली 10 लाख जितनी रकम की गड्डियाँ उसी कमरे में चादर से ढँककर रख दी।
साधु बाबा आराम करने लगे।
खीर थोड़ी हजम हुई । साधु बाबा के मन में हुआ कि इतनी सारी गड्डियाँ पड़ी हैं, एक-दो उठाकर झोले में रख लूँ तो किसको पता चलेगा ?
साधु बाबा ने एक गड्डी उठाकर रख ली।
शाम हुई तो सेठ को आशीर्वाद देकर चल पड़े।
सेठ दूसरे दिन रूपये गिनने बैठा तो 1 गड्डी (दस हजार रुपये) कम निकली।
सेठ ने सोचा कि महात्मा तो भगवतपुरुष थे, वे क्यों लेंगे.?
नौकरों की धुलाई-पिटाई चालू हो गयी। ऐसा करते-करते दोपहर हो गयी।
इतने में साधु बाबा आ पहुँचे तथा अपने झोले में से गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोलेः "नौकरों को मत पीटना, गड्डी मैं ले गया था।"
सेठ ने कहाः "महाराज ! आप क्यों लेंगे ? जब यहाँ नौकरों से पूछताछ शुरु हुई तब कोई भय के मारे आपको दे गया होगा । और आप नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही वापस करने आये हैं क्योंकि साधु तो दयालु होते है।"
साधुः "यह दयालुता नहीं है । मैं सचमुच में तुम्हारी गड्डी चुराकर ले गया था।
साधु ने कहा सेठ ....तुम सच बताओ कि तुम कल खीर किसकी और किसलिए बनायी थी ?"
सेठ ने सारी बात बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावल खरीदता हूँ, उसी चावल की खीर थी।
साधु बाबाः "चोरी के चावल की खीर थी इसलिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया। सुबह जब पेट खाली हुआ, तेरी खीर का सफाया हो गया तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई कि
'हे राम.... यह क्या हो गया ?
मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी । इसलिए तेरे पैसे लौटाने आ गया ।
"इसीलिए कहते हैं कि....
जैसा खाओ अन्न ... वैसा होवे मन।
जैसा पीओ पानी .... वैसी होवे वाणी । जैसी शुद्धी.... वैसी बुद्धी.... ।
जैसे विचार ... वैसा संसार
🙏🙏🙏
बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा ।
सेठ ने सोचा कि इतना पाप हो रहा है , तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए।
एक दिन उसने बासमती चावल की खीर बनवायी और किसी साधु बाबा को आमंत्रित कर भोजनप्रसाद लेने के लिए प्रार्थना की।
साधु बाबा ने बासमती चावल की खीर खायी।
दोपहर का समय था । सेठ ने कहाः "महाराज ! अभी आराम कीजिए । थोड़ी धूप कम हो जाय फिर पधारियेगा।
साधु बाबा ने बात स्वीकार कर ली।
सेठ ने 100-100 रूपये वाली 10 लाख जितनी रकम की गड्डियाँ उसी कमरे में चादर से ढँककर रख दी।
साधु बाबा आराम करने लगे।
खीर थोड़ी हजम हुई । साधु बाबा के मन में हुआ कि इतनी सारी गड्डियाँ पड़ी हैं, एक-दो उठाकर झोले में रख लूँ तो किसको पता चलेगा ?
साधु बाबा ने एक गड्डी उठाकर रख ली।
शाम हुई तो सेठ को आशीर्वाद देकर चल पड़े।
सेठ दूसरे दिन रूपये गिनने बैठा तो 1 गड्डी (दस हजार रुपये) कम निकली।
सेठ ने सोचा कि महात्मा तो भगवतपुरुष थे, वे क्यों लेंगे.?
नौकरों की धुलाई-पिटाई चालू हो गयी। ऐसा करते-करते दोपहर हो गयी।
इतने में साधु बाबा आ पहुँचे तथा अपने झोले में से गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोलेः "नौकरों को मत पीटना, गड्डी मैं ले गया था।"
सेठ ने कहाः "महाराज ! आप क्यों लेंगे ? जब यहाँ नौकरों से पूछताछ शुरु हुई तब कोई भय के मारे आपको दे गया होगा । और आप नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही वापस करने आये हैं क्योंकि साधु तो दयालु होते है।"
साधुः "यह दयालुता नहीं है । मैं सचमुच में तुम्हारी गड्डी चुराकर ले गया था।
साधु ने कहा सेठ ....तुम सच बताओ कि तुम कल खीर किसकी और किसलिए बनायी थी ?"
सेठ ने सारी बात बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावल खरीदता हूँ, उसी चावल की खीर थी।
साधु बाबाः "चोरी के चावल की खीर थी इसलिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया। सुबह जब पेट खाली हुआ, तेरी खीर का सफाया हो गया तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई कि
'हे राम.... यह क्या हो गया ?
मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी । इसलिए तेरे पैसे लौटाने आ गया ।
"इसीलिए कहते हैं कि....
जैसा खाओ अन्न ... वैसा होवे मन।
जैसा पीओ पानी .... वैसी होवे वाणी । जैसी शुद्धी.... वैसी बुद्धी.... ।
जैसे विचार ... वैसा संसार
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