Gyansagar ( ज्ञानसागर ) - भक्ति व् ज्ञान का अद्भुत संगम
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लड़के का शरीर, परिवार, घर और व्यापार सब कुछ वही था, लेक़िन उसकी मनःस्थिति बदल चुकी थी। जो वो ले जा नहीं सकता अब उस धन के पीछे भागना उसने छोड़ दिया था। निर्लिप्त भाव से कीचड़ में कमल की तरह वो खिल उठा था। उसकी चेतना ऊपर उठ चुकी थी। वह कार्य निपटा कर सुबह शाम घण्टों ध्यानस्थ बैठा रहता, सप्ताह में एक दिन कण कण में विद्यमान परमात्मा की सेवा में लगाता। उसने अपने शहर के सभी अपंगों को जरूरी उपकरण दिए। नए रोजगार के अवसर दिए। रोज़ रात को जरूरतमंदों की मदद चुपके से कर देता। गरीब कन्याओं के सामूहिक विवाह करवाता।

वह व्यापारी से योगी बन गया था, दीप बनकर जल गया था। स्वयं प्रकाशित हो दूसरों के जीवन के अंधेरे दूर कर रहा था। आत्मज्ञान का जो आता उसे उपदेश देता। दुकान पर बैठे बैठे जब वो कोई टीवी पर जिहाद और आतंक की टीवी न्यूज देखता तो वो ज़ोर से हँसता था। कर्मचारी जब पूंछते कि मालिक आप क्यों हँसे? तब वो बोलता, इनके पिता और समाज ने भी इनसे झूठ बोला है, अमुक का बेटा और अमुक जाति बताया। अरे यह मात्र आत्मा हैं और कुछ समय के लिए ही संसार में आये हैं यह इन्हें ज्ञात ही नहीं है। जिहाद मुल्लाओं का एक धर्म व्यापार है, जिसके ज़ाल में युवा को फंसा रहे हैं। वास्तव में सब हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई एक ही हैं उस परमात्मा का अंश आत्मा हैं। जब शरीर ही इन सबका नहीं तो धर्म-जाति इनकी कैसे हुई? जब जन्नत मुल्ला मौलवी ने स्वयं नहीं देखी, तो उसका मरने के बाद जन्नत देने का दावा क्या झूठ नहीं? जब शरीर मरने के बाद सांस तक नहीं ले सकता तो वो हूरों के साथ समय किस शरीर से और कैसे बिताएगा? जब इंसान को पिछला जन्म याद नहीं तो अगले जन्म में वो कैसे बता पायेगा कि हूर और जन्नत मिली थी?

इसलिए हँसता हूँ , पागलों की न्यूज़ देखता हूँ। जिन्हें स्वयं के अस्तित्व का पता नहीं उनके बिन सर पैर की बात पर हँसता हूँ। इसलिए मैं संसार में बहुत कम रहता हूँ, जब भी वक्त मिलता है अंतर्जगत में प्रभु के निकट चला जाता हूँ। ध्यानस्थ हो जाता हूँ। स्वयं को जानोगे तो छलावे में न पड़ोगे, इसी जीवन में सुख-दुःख से परे आनन्द में रहोगे।

✍️विनोद मिश्रा
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कंगना राणावत जैसे कई लोग है जो सनातन संस्कृति के साथ खेलते है अपने फायदे के लिये , हमें किसी का साथ विचारों के कारण ही देना चाहिए , व्यक्तित्व एक सा रहे ये सबके साथ सम्भव नही !! फ़टे कपड़ो में खुद रहकर अपनी तुलना माता से करना य तो मूर्खता है य फिर अपराध !