Gyansagar ( ज्ञानसागर ) - भक्ति व् ज्ञान का अद्भुत संगम
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ओह , आज की स्त्रियां आज अपने रिश्तों को बचाने के लिये तमाम संघर्ष करती है ! सुनती है , कष्ट सहती है, यज्ञ,हवन,टोने टोटके पूजा पाठ और गालियां तक सुनती है पर आने वाले कल में युद्ध होगा , विद्रोह होगा !! सीधे बात थाने और अदालत तक जाएगी य फिर तलाक तक !! 😢 पुरुष वर्ग काफी तरसेगा !! ये निश्चित है !!
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एक व्यापारी से योगी तक का सफ़र

बड़े अमीर घर में जन्मा था, स्वर्ण चाँदियो से खेला था, दुःख अभाव का उसे पता न था, जो मांगा वो सब कुछ पाया था।

इधर एमबीए पास हुआ, उधर योग्य कन्या से उसका विवाह हुआ। एक बेटी का पिता भी बन गया, ख़ानदानी स्वर्ण व्यापार सम्हालने भी लगा।

एक दिन उसके प्राणों से प्यारा दादा गुज़र गया, पहली बार उसने मौत का मंजर घर में देखा। दादा का शरीर ठंडा और निष्प्राण था, उसे करवाया जा रहा स्नान था।

दादा को स्वर्णाभूषण का बहुत शौक था, अंगूठियों का उनकी उंगलियों में अंबार था।
लेक़िन यह क्या घर वालों ने समस्त आभूषण उतार लिए, चिता पर मात्र एक वस्त्र पहना के लिटा दिया। एक गायत्री परिवार के पुरोहित आये थे क्रिया कर्म करवाने के लिए...

लड़के ने प्रश्न पूँछा
- कि ऐसा क्यों किया, दादा जी के समस्त आभूषण क्यों उतारे?
पण्डित(पुरोहित) ने कहा
- तुम्हारा दादा यह शरीर छोड़ गया, मरने के बाद कोई कुछ नहीं ले जा सकता है, जो सांसारिक वस्तु है सब यहीं रह जाता। यद्यपि वो तो अपना शरीर भी नहीं ले जा सके। अब यह भी जलाकर नष्ट किया जाएगा।

लड़का - लेक़िन दादाजी तो यही है न? ये तो लेटे हैं?
पुरोहित - नहीं बेटे यह शव है,
यह मात्र उनका शरीर है, दादा जी शरीर छोड़कर गए,
वो भगवान के पास गए।

लड़का - मैं पुनः दादा से कैसे मिल सकता हूँ?
पण्डित - अब असम्भव है, तुम उनसे नहीं मिल सकते।
बेटे, आत्मा शरीर धारण करती है, जन्म लेती है, समय पूरा होने पर इसे छोड़ देती है। पुनः जन्म लेती है।

लड़का - क्या आप बता सकते हैं? वो कहाँ जन्मेंगे?
पण्डित - नहीं, मुझे नहीं पता। भगवान ही जानता है।

लड़का- भगवान कहाँ मिलेंगे यह बताओ?
पण्डित - भगवान कण कण में है, सर्वत्र हैं उनसे मिलने के लिए बाहर नहीं भीतर अंतर्जगत में प्रवेश करना होगा? अंतर्जगत में जाकर ही उनसे संवाद किया जा सकता है।

लड़का- क्या मेरी भी मृत्यु होगी?
पण्डित - हाँ, जो जन्मा है वो मरेगा। जो मरेगा वो पुनः जन्मेगा। यह शरीर तुम नहीं हो वस्तुतः तुम एक आत्मा हो। तुम भी यह शरीर ले जा न सकोगे।

लड़का - क्या कहा आपने ...मैं आत्मा हूँ? मेरी यह पहचान तो मुझे किसी ने आज तक बताई नहीं। मुझे तो कहा गया, मैं अमुक का बेटा, अमुक गोत्र और अमुक जाति का हूँ। मेरा नाम अमुक है। लेकिन मैं आत्मा हूँ। यह तो न घर मे बताया गया और न स्कूल में और न हीं कॉलेज में? पण्डित जी तुम क्या हो? क्या तुम भी आत्मा हो? मेरे पिता भी मात्र आत्मा है?

पण्डित- हाँजी मैं भी आत्मा हूँ? यहाँ बैठे सभी आत्मा ही हैं।
लड़का - जन्म मरण के कई चक्रों में गुजरने वाला मैं आत्मा हूँ। मरने पर मैं कुछ साथ ले जा नहीं सकता। पूर्व जन्म में भी ऐसा कोई परिवार होगा, आगे के जन्म में भी ऐसा कोई परिवार होगा। आख़िर मैँ वास्तव में हूँ कौन? कहाँ से आया हूँ? कहाँ जाऊँगा? मुझे मेरी वास्तिविकता का स्मरण क्यों नहीं हैं?? अनेकों प्रश्नों से वो युवा लड़का भर उठा।

पण्डित जी गायत्री परिवार के थे, उन्होंने उसे पाँच पुस्तकें दी-
📖 मरणोत्तर जीवन
📖 मरने के बाद क्या होता है
📖 मैं क्या हूँ?
📖 अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
📖 ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है

दादा की अंतिम इच्छा थी कि पोता ही मुखाग्नि दे, उसने चिता को मुखाग्नि दी। लोगों का क्या अनुभव था पता नहीं लेकिन उस लड़के ने उस चिता में मानो स्वयं को मुखाग्नि दी, स्वयं का ही श्राद्ध तर्पण किया। कुछ उसके भीतर घट गया।

घर आया और श्वेत वस्त्रों को धारण किया और मौन हो गया। घण्टों ध्यानस्थ रहता। समस्त आभूषणों को उतार दिया। पण्डित जी द्वारा दी गयी पुस्तकों को पढ़ने लगा। घर में सब डर गए, कहीं वैराग्य में घर न छोड़ दे।

सब अपनी अपनी तरह से उसे समझा रहे थे, बूढ़े माता-पिता उसे अपनी दुहाई दे रहे थे, पत्नी उसे स्वयं की और अपनी बच्ची की दुहाई दे रही थी।

लड़का बोला - पिताजी आपने मुझसे झूठ बोला और मुझे एक झूठी पहचान बताई। मुझे नहीं बताया कि मैं एक आत्मा हूँ, आपसे पहले भी मेरे कई पिता कई जन्मों में हो चुके हैं, हे माता मैं कई गर्भो में जन्म ले चुका हूँ, कई जन्मों में कई परिवारों में रह चुका हूँ।

मैं वास्तव में कौन हूँ? मैं क्या हूँ? मैं किस यात्रा में हूँ? अब मुझे जानना है।

चिंता मत कीजिये, मैं आप सबको छोड़कर जंगल मे नही जाऊंगा और अपने कर्तव्य निभाऊंगा। लेक़िन अब जब होश में आ गया हूँ तो अब तक का बेहोश जीवन भी जी न पाऊँगा। यदि मुझे होश में जीने दें तो मैं यही रहकर स्वयं को जानने की अंतर्जगत की यात्रा प्रारम्भ करना चाहता हूँ।
लड़के का शरीर, परिवार, घर और व्यापार सब कुछ वही था, लेक़िन उसकी मनःस्थिति बदल चुकी थी। जो वो ले जा नहीं सकता अब उस धन के पीछे भागना उसने छोड़ दिया था। निर्लिप्त भाव से कीचड़ में कमल की तरह वो खिल उठा था। उसकी चेतना ऊपर उठ चुकी थी। वह कार्य निपटा कर सुबह शाम घण्टों ध्यानस्थ बैठा रहता, सप्ताह में एक दिन कण कण में विद्यमान परमात्मा की सेवा में लगाता। उसने अपने शहर के सभी अपंगों को जरूरी उपकरण दिए। नए रोजगार के अवसर दिए। रोज़ रात को जरूरतमंदों की मदद चुपके से कर देता। गरीब कन्याओं के सामूहिक विवाह करवाता।

वह व्यापारी से योगी बन गया था, दीप बनकर जल गया था। स्वयं प्रकाशित हो दूसरों के जीवन के अंधेरे दूर कर रहा था। आत्मज्ञान का जो आता उसे उपदेश देता। दुकान पर बैठे बैठे जब वो कोई टीवी पर जिहाद और आतंक की टीवी न्यूज देखता तो वो ज़ोर से हँसता था। कर्मचारी जब पूंछते कि मालिक आप क्यों हँसे? तब वो बोलता, इनके पिता और समाज ने भी इनसे झूठ बोला है, अमुक का बेटा और अमुक जाति बताया। अरे यह मात्र आत्मा हैं और कुछ समय के लिए ही संसार में आये हैं यह इन्हें ज्ञात ही नहीं है। जिहाद मुल्लाओं का एक धर्म व्यापार है, जिसके ज़ाल में युवा को फंसा रहे हैं। वास्तव में सब हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई एक ही हैं उस परमात्मा का अंश आत्मा हैं। जब शरीर ही इन सबका नहीं तो धर्म-जाति इनकी कैसे हुई? जब जन्नत मुल्ला मौलवी ने स्वयं नहीं देखी, तो उसका मरने के बाद जन्नत देने का दावा क्या झूठ नहीं? जब शरीर मरने के बाद सांस तक नहीं ले सकता तो वो हूरों के साथ समय किस शरीर से और कैसे बिताएगा? जब इंसान को पिछला जन्म याद नहीं तो अगले जन्म में वो कैसे बता पायेगा कि हूर और जन्नत मिली थी?

इसलिए हँसता हूँ , पागलों की न्यूज़ देखता हूँ। जिन्हें स्वयं के अस्तित्व का पता नहीं उनके बिन सर पैर की बात पर हँसता हूँ। इसलिए मैं संसार में बहुत कम रहता हूँ, जब भी वक्त मिलता है अंतर्जगत में प्रभु के निकट चला जाता हूँ। ध्यानस्थ हो जाता हूँ। स्वयं को जानोगे तो छलावे में न पड़ोगे, इसी जीवन में सुख-दुःख से परे आनन्द में रहोगे।

✍️विनोद मिश्रा
Channel name was changed to «Gyansagar ( ज्ञानसागर ) - भक्ति व् ज्ञान का अद्भुत संगम»
कंगना राणावत जैसे कई लोग है जो सनातन संस्कृति के साथ खेलते है अपने फायदे के लिये , हमें किसी का साथ विचारों के कारण ही देना चाहिए , व्यक्तित्व एक सा रहे ये सबके साथ सम्भव नही !! फ़टे कपड़ो में खुद रहकर अपनी तुलना माता से करना य तो मूर्खता है य फिर अपराध !