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ईरान हिज़ाब और लड़कियां

ईरान एक मध्य एशियाई देश है जो धार्मिक तौर पर एक मुस्लिम राष्ट्र है वहां पर एक आंदोलन अभी खूब चर्चा में है , जिसमें महिलाएं ईरान की सड़कों पे हैं । जगह- जगह एक अलग किस्म की होली जलाई जा रही है जिसकी हिमाकत आज तक नहीं की गई लेकिन बहुत पहले की जानी चाहिए थी । ईरान की सड़कों पे जलती हुई आग और कुछ भी नहीं यह है उस प्राचीन संकुचित , अतर्किक , दकियानुशी और पितृसत्तात्मक विचारों के जलने की,जो एक मुस्लिम वर्ग की महिलाओं दिमागों में बचपन से लाद दिए जाते हैं और वो विचार है हिज़ाब और बुर्के। अब तो ये उनकी संस्कृति का हिस्सा हो चुके हैं और न चाहते हुए भी पहनना होता है ।

आज ईरान में जो सड़कों पर चिल्लाती , नारे लगाती ,आग में हिज़ाब जलती, और विरोध में अपने बाल तक काट देने वाली लड़कियों के वीडियो और फोटो हमें दिखाई दे रहे हैं ये बहुत पहले हो जाना चाहिए था लेकिन देर आए दुरूस्त आए .... बेहतर है ।
हिज़ाब पहनने के इस मुद्दे को धर्म से बांध देने को कोशिश होती रही है कि उसे बाहर से कुछ कहकर या दबाब बना कर बंद नहीं किया जा सकता था इसके लिए जरूरत थी आत्म जागरण की स्वप्रेरणा की और खुद महिलाओं को मर्जी की ... शायद महिलाओं में ये हिम्मत रही भी होगी लेकिन वो आगे नहीं आ पाई इस हिम्मत को जिंगारी देने का काम किया उस महिला को हत्या ने जो ईरान में कुछ दिन पहले ठीक तरीके से हिजाब न पहन पाने के कारण मार दी गई ।

अब महिलाएं सड़कों पर है और होना ही चाहिए और हर वर्ग की महिलाओं को होना चाहिए उन्हें हर उस मुद्दे पर होना चाहिए जहां जरूरत है , जो रूढ़ियां उनके अधिकारों को सीमित करे , उस हर एक व्यवस्था के लिए महिलाओं को सड़कों पर उतरना चाहिए और नारे लगाने चाहिए आग लगा देनी चाहिए उस व्यवस्था को जो उनके अधिकार सीमित करे उन्हें सीमाओं में बांधने की कोशिश करें, पुरुषों से कमतर करने की कोशिश करे।

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हड़प्पा संस्कृति ---

1. नगरीय सभ्यता

2. पक्की ईंटों का प्रयोग

3. घोड़ों के प्रयोग से अपरिचित

4. देवियों की प्रधानता

5. गणतंत्रात्मक स्थिति मजबूत

6. युद्ध के न्यूनतम साक्ष्य

7. मुहरों पर हाथी व बाघ का अंकन

8. मातृसत्तात्मक समाज

9. संयुक्त परिवार प्रथा से अपरिचित

10. उद्योग आधारित अर्थव्यवस्था

11. मूर्तिपूजा का प्रचलन

12. पवित्र पशु बैल (वृषभ) थी

13. वर्णव्यवस्था का अभाव

14. मछली का मांस प्रिय

15. मातृदेवी व शिव की पूजा
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सती प्रथा का अंत

इतिहास में गुप्त काल से पहले तक उत्तर भारत में अंतिम संस्कार के समय स्वेच्छा से स्वामीभक्ति दर्शाने के लिए जान देने का प्रचलन था। इसके लिए विधवा का जान देना जरूरी नहीं था ।

बादशाह अकबर ने सती की कुरीति को मिटाने का प्रयास किया लेकिन वे इसमें पूरी तरह सफल नहीं रहे।

1828 में राजाराममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना कर सती प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया।

1829 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा पर रोक लगा दी।
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साम्प्रदायिक पंचाट (1932 ई.) -::::::-

16 अगस्त, 1932 ई. को विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधित्व के विषय पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने 'कम्युनल अवार्ड' (मैवडोनाल्ड अवर्ड) जारी किया। यह वस्तुत: अंग्रेजों की 'बांटो व राज करो' नीति का वास्तविक रूप था। इस पंचाट में पृथक निर्वाचक पद्धति को न केवल मुस्लिमों के लिए जारी रखा गया अपितु इसे दलित वर्गों पर भी लागू कर दिया गया। पूणे के यखदा जेल मे उस अर्वाड के विरोध मे महात्मा गांधी ने जेल में ही 20 सितम्बर, 1932 ई. को आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया। यह भारत का प्रथम आमरण अनशन था।
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कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत -:

(1) राजा (सिर),

(2) आमात्य (आँख),

(3) जनपद (जंघा),

(4) दुर्ग (बाँह),

(5) कोष (मुख),

(6) दण्ड(मस्तिष्क),

(7) मित्र (कान)।

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Forwarded from MPPSC by VS Education (VSE)
💐 इंदौर में NEYU द्वारा विशाल पैदल मार्च - 25 सितंबर - दोपहर 3 बजे 💐

✍️MPPSC के रिजल्ट्स जारी करने सहित विभिन्न व्यापम EXAMS की अनियमितताओं को दूर करने की मांगे रखी गईं
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अन्त्योदय-

अन्त्योदय का सरल अर्थ है-'समाज के अंतिम व्यक्ति का उदय' अन्त्योदय एक आर्थिक विचार है, जो आर्थिक विकास के साथ समाज के अंतिम व्यक्ति का कल्याण करना चाहता है।
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पंडित दीनदयाल उपाध्याय की रचनाएँ

प्रमुख रचनाएँ-
(1) दो योजनाएँ,

(2) राजनीतिक डायरी,

(3) सम्राट चंद्रगुप्त,

(4) एकात्मक मानववाद,

(5) भारतीय अर्थनीति का अवमूल्यन,

(6) जगद्गुरू शंकराचार्य ।
सभी स्टूडेंट्स रैली का वीडियो स्टेटस पर लगाए🔥🔥
वीडियो को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकि बहरी सरकार के कानों तक पहुंचे ...🙏
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समुद्री घोड़ा


समुद्री घोड़ा एक समुद्री जीव है जो हिप्पोकैंपस प्रजाति के अंतर्गत आता है। इसे मत्स्य वर्ग के अंतर्गत रखा गया है क्योंकि यह सांस लेने में गलफड़े का इस्तेमाल करता है और यह जल में तैरता भी है क्योंकि इसके शरीर में हड्डियाँ नहीं होती है।
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धौलावीरा : सभ्यता और मनुष्य
धौलावीरा एक ऐसा नगर जहां आज कोई नहीं रहता ! लेकिन हजारों साल पहले यह दुनिया के सबसे विकसित नगरों में से एक था और इस बात की जानकारी भी हमें अभी भारत के आजाद होने तक ज्ञात ही न थी ।

इसकी खोज हुई 1967 में जब पुरातत्वविदों ने यहां खनन कार्य किया और बड़े विशाल नगर के अवशेष उन्हे जमीन के नीचे दबे मिले तब भारत का एक प्राचीन नगर दुनियां के सामने आया । हालांकि धौलवीरा सिंधु या हड़प्पा सभ्यता का ही एक नगर है लेकिन हड्डपा के प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो, हड़प्पा जो प्रमुख नगर है भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान में चले गए । भारत में बचे हड़प्पा कालीन नगरों में रोपड़(पंजाब) , कालीबंगा(राजस्थान) , राखीगढ़ी (हरियाणा) एवं लोथल और धौलावीरा ( गुजरात ) जिनमें से आज धौलावीरा की चर्चा इसलिए की जा रही हैं क्योंकि यूनेस्को ने धौलावीरा को विश्व विरासत स्थलों की सूची में स्थान दिया है ।

इससे पहले भी सिंधु सभ्यता के स्थल मोहनजोदड़ो को विश्व विरासत स्थल में शामिल किया गया है पर वह वर्तमान में पाकिस्तान में है । ऐसे में हड़प्पा कालीन भारत का पहला स्थल धौलावीरा है जो विश्व विरासत में शामिल किया है और इसके साथ ही यह भारत का 40 वाँ यूनेस्को स्थल बन गया है ।
इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखने वालो के लिए यह गर्व का विषय है ।

हड़प्पा सभ्यता के बारे में 1920 से पहले तक कुछ खास जानकारी नहीं थी और हम भारतीय भी अपने इतिहास को वैदिक काल तक ही सीमित मानते थे । लेकिन 1920 में हुई हड़प्पा और 1921 में मोहनजोदड़ो की खोज ने भारत की प्राचीन विकसित वैभवशाली सभ्यता के प्रमाण् प्रस्तुत किए और पूरे विश्व को आश्चर्य में डाल दिया क्योंकि हप्पड़ा सभ्यता तत्कालीन सभी सभ्यताओं में सर्वाधिक विकसित थी हड़प्पा के स्थल नागरीकृत थे और नगर नियोजन उस समय का श्रेष्ठ नगर व्यवस्था के प्रमाण था हड़प्पा वासियों के नगर ग्रिड पद्धति (#) यानी की उसकी गालियां एक दूसरे को समकोण पर कटती है ।

हड़प्पा वासियों ने नालियों का विकास किया था और आज के सीवेज सिस्टम की तरह वे भी मैन होल (चैंबर) बनाते थे साथ ही साथ लकड़ी के पाइप का उपयोग करते थे । नगर में जल निकास तंत्र दुनिया के अन्य तत्कालीन शहरों में सबसे बेहतरीन था वे लोग पक्की ईंटो का उपयोग कर घर बनाते थे और और उनके घरों में रसोई घर नहाने के लिए बाथरूम और अलग - अलग कमरे मौजूद होते थे ।

कई स्थानों से मिली मुद्राएं बताती है की सिंधु सभ्यता में व्यापार वाणिज्य भी उन्नत स्तिथि में था और यह व्यापार सभ्यता के आंतरिक स्थानों के अलावा विदेशों जैसे सोमारिया और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के साथ भी होता था । यह सभी चीजें प्रमाणित करती है कि हम आज से 5 हजार साल दुनिया के सबसे उच्च किस्म के निर्माणकर्ता और विकसित लोग थे ।

लेकिन एक इतनी विकसित सभ्यता ऐसे विलुप्त हुई थी की इसके अवशेष मात्र तक पता किसी को सदियों तक न चला था , और अब चला भी तो भी हम अभी तक वहां मिली वस्तुओं के आधार पर ही अनुमान लगाते हैं कि वहां धर्म कैसा होगा , समाज होगा तो कैसा होगा , लोग कैसे होगें आदि आदि ।

वैसे आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सिंधु सभ्यता वाले लिखना भी जानते थे। जबकि उनके बाद की वैदिक संस्कृति के लोग लेखन कला से परिचित नहीं थे और वे अपने साहित्य को ' श्रुति साहित्य ' यानी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी सुना-सुना कर आगे बढ़ते थे। लेकिन हम यानी मनुष्य को जो मंगल ग्रह पर जाने में तो खुद को सक्षम समझता है पर अभी तक सिंधु की लिपि को पढ़ने में सफल नहीं हुआ है।

खैर एक दिन लिपि भी पढ़ ली जाएगी और हम जान जायेंगे कि सभ्यता कैसी थी ? क्या - क्या था ? उसमें ।

पर इतिहास से हमें सीखना चाहिए कि हमसे पहले भी दुनिया में अनेक लोग आए हैं और चले गए हैं उन्होंने बेहद नायब नमूने बनाए जिनमें अनेकों आज भी अनसुलझे हैं लेकिन उन लोगों का बजूद तक नहीं रहा है हम इंसान कितनी भी तरक्की कर ले हम बहुत सीमित ही है कोई परफेक्ट नहीं हुआ न कोई हमेशा के लिए हुआ है । बेहतर है अच्छा जीवन जिए और अपने लिए जिए ... ।

( यह काफी पुराना लेख है अधूरा पड़ा था आज पूरा किया )

✍️मोनू...
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थ्रस्ट योजना -

प्रारंभ- 1989

केन्द्र सरकार द्वारा सूखें की स्थिति से निपटने हेतु अरहर, गेहूँ, चावल की फसल को शत् प्रतिशत केन्द्रीय सहायता दी जावेगी।
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सर्वशिक्षा अभियान -

भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसकी शुरुआत (2001-02) में श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के प्रधानमंत्री काल में की गयी थी।.

प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण जैसा कि भारतीय संविधान के 86 वे संविधान संशोधन द्वारा निर्देशित किया गया है जिसके तहत 6-14 साल के बच्चों की और मुफ्त अनिवार्य शिक्षा के प्रावधान को मौलिक अधिकार बनाया गया है।
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भारत सरकार की ओर से दिया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है, जो किसी व्यक्ति विशेष को भारतीय सिनेमा में उसके आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है। इस पुरस्कार का प्रारम्भ दादा साहब फाल्के के जन्म शताब्दि-वर्ष 1969 से हुआ। प्रथम पुरस्कार देविका रानी को दिया गया था।

52 वां दादा साहब फाल्के अवार्ड 2022 आशा पारेख जी को दिया जाएगा।

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समन्वयन (Co-ordination) -


जीवों में बाह्य व भीतरी वातावरण के बीच सन्तुलन या तालमेल बनाये रखने की क्षमता को नियन्त्रण या होमियोस्टेसिस (Homeostasis) तथा सामान्य स्थिति बनाये रखने की प्रतिक्रियाओं को समन्वयन कहते हैं।