उत्तराखंड लोकसेवा आयोग के सचिव गिरधारी सिंह रावत ने बताया कि कुल पंजीकृत 1,49,509 अभ्यर्थियों में से प्रथम सत्र में 71,264 अभ्यर्थी उपस्थित और 78,245 अभ्यर्थी अनुपस्थित रहे।
प्रथम सत्र में उपस्थित अभ्यर्थियों का कुल प्रतिशत 47.67 रहा।
द्वित्तीय सत्र में 69,992 अभ्यर्थी उपस्थित और 79,517 अभ्यर्थी अनुपस्थित रहे।
द्वित्तीय सत्र में उपस्थित अभ्यर्थियों का कुल प्रतिशत 46.81 रहा।
प्रथम सत्र में उपस्थित अभ्यर्थियों का कुल प्रतिशत 47.67 रहा।
द्वित्तीय सत्र में 69,992 अभ्यर्थी उपस्थित और 79,517 अभ्यर्थी अनुपस्थित रहे।
द्वित्तीय सत्र में उपस्थित अभ्यर्थियों का कुल प्रतिशत 46.81 रहा।
Nanda Gaurav Yojana Notification and important documents
हरेला यानी पांच या सात प्रकार के अनाजों की हरी-पीली लम्बी पत्तियां. आज हरेले की पूजा होगी और हरेला काटा जायेगा. काटने के बाद पहाड़ी इसे अपने कान के पीछे और सिर पर पूरी सान से रखेंगे. इसके अलावा गाय के गोबर संग हरेला अपने घर की चौखट पर भी लगाया जायेगा.
हरेला पर्व सावन के पहले दिन मनाया जाता है इस दिन से सूर्य मकर से कर्क रेखा की ओर अग्रसर होता है इसलिये इए कर्क संक्रांति भी कहा जाता है. इस पर्व के दिन घर की बेटियों, बहिनों और पंडितों को दक्षिणा दी जाती है.
घर की सबसे बुजुर्ग महिला परिवार के सभी सदस्यों के कान के पीछे और सिर पर हरेला रख आशीष देती है. पृथ्वी के समान धैर्यवान और आकाश के समान उदार रहने के साथ हिमालय में हिम और गंगा में पानी रहने तक इस दिन को देखने और मिलने की कामना की जाती है –
लाग हरैला, लाग बग्वाली
जी रया, जागि रया
अगास बराबर उच्च, धरती बराबर चौड है जया
स्यावक जैसी बुद्धि, स्योंक जस प्राण है जो
हिमाल म ह्युं छन तक, गंगज्यू म पाणि छन तक
यो दिन, यो मास भेटने रया
परम्परा रही है कि आज के दिन एक पेड़ जरुर रोपा जाता है. यह माना जाता है कि आज के दिन रोपा गया पेड़ कभी नहीं सूखता है. पहाड़ में लोग कई जगहों पर अपने खेत की मेड़ों पर आज के दिन पेड़ रोपते आज भी देखने को मिल जायेंगे.
ऐसा लगता है जैसे अभी बीते दिनों की ही तो बात हो जब बरसात के इन दिनों फौजी और प्रवासी पहाड़ी भारतीय डाक से आने वाले अन्तर्देशी लिफाफे का बेसब्री से इंतजार रहता. इन दिनों फौजी और प्रवासी पहाड़ियों की आने वाली चिठ्ठी बाहर से ही पहचानी जा सकती थी क्योंकि उसमें मोहर के साथ लगा होता पीला पिठ्या और भीतर से निकली होती हरेले की पत्तियां. दुनिया के लिये यह महज घास की पत्तियां हुआ करती थी पर एक पहाड़ी के लिये इसके क्या मायने थे इसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता.
हरेला पर्व सावन के पहले दिन मनाया जाता है इस दिन से सूर्य मकर से कर्क रेखा की ओर अग्रसर होता है इसलिये इए कर्क संक्रांति भी कहा जाता है. इस पर्व के दिन घर की बेटियों, बहिनों और पंडितों को दक्षिणा दी जाती है.
घर की सबसे बुजुर्ग महिला परिवार के सभी सदस्यों के कान के पीछे और सिर पर हरेला रख आशीष देती है. पृथ्वी के समान धैर्यवान और आकाश के समान उदार रहने के साथ हिमालय में हिम और गंगा में पानी रहने तक इस दिन को देखने और मिलने की कामना की जाती है –
लाग हरैला, लाग बग्वाली
जी रया, जागि रया
अगास बराबर उच्च, धरती बराबर चौड है जया
स्यावक जैसी बुद्धि, स्योंक जस प्राण है जो
हिमाल म ह्युं छन तक, गंगज्यू म पाणि छन तक
यो दिन, यो मास भेटने रया
परम्परा रही है कि आज के दिन एक पेड़ जरुर रोपा जाता है. यह माना जाता है कि आज के दिन रोपा गया पेड़ कभी नहीं सूखता है. पहाड़ में लोग कई जगहों पर अपने खेत की मेड़ों पर आज के दिन पेड़ रोपते आज भी देखने को मिल जायेंगे.
ऐसा लगता है जैसे अभी बीते दिनों की ही तो बात हो जब बरसात के इन दिनों फौजी और प्रवासी पहाड़ी भारतीय डाक से आने वाले अन्तर्देशी लिफाफे का बेसब्री से इंतजार रहता. इन दिनों फौजी और प्रवासी पहाड़ियों की आने वाली चिठ्ठी बाहर से ही पहचानी जा सकती थी क्योंकि उसमें मोहर के साथ लगा होता पीला पिठ्या और भीतर से निकली होती हरेले की पत्तियां. दुनिया के लिये यह महज घास की पत्तियां हुआ करती थी पर एक पहाड़ी के लिये इसके क्या मायने थे इसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता.
मित्रो!आज आप सभी को सपरिवार हरेला पर्व,2024 की हार्दिक शुभकामनाएं। हम सभी विधाता द्वारा रचित उन तमाम रचनाओं--जल,जंगल, जमीन, पेड़-पौधों, नदियों, झरनों, पशु-पक्षियों, गिरिराज हिमालय से लेकर समुद्र एवं महासमुद्रों के प्रति कृतज्ञभाव के साथ संवेदनशील बने रहें। बद से बदतर हो रहे पर्यावरण को सुंदर एवं सुखद बनाने के निमित्त हरेला महोत्सव के दौरान अपने पूर्वजों की स्मृति में सुरक्षाभाव के साथ यथास्थान पेड़-पौधों का रोपण कर हरेला पर्व को सफल बनायें। धन्यवाद
👏1